ट्रिक और ट्रीट? (Trick or Treat)
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ट्रिक और ट्रीट?
मैं मूक स्तब्ध दरवाजे पर खड़ा था,
सामने बच्चों का एक झुण्ड अड़ा था।
कोई भूत कोई चुड़ैल कोई सुपर हीरो बना हुआ,
पूरे आत्मविश्वास के साथ द्वार पर तना हुआ।
एक एक कर मैंने सबके चेहरों को निहारा,
कोई पापा की परी कोई माँ का राजदुलारा।
कोई ड्रैकुला बना लाल दाँत दिखा रहा था,
तो कोई हैरीपॉटर बन स्पेल्स सिखा रहा था।
ऊँचा नुकीला हैट पहने एक कन्या विच बनी थी,
और इलास्टी गर्ल की आयरन मैन से ठनी थी।
ट्रिक और ट्रीट?
मुझे मूक निष्क्रिय देख बच्चों ने फ़िर दोहराया,
और जोरों से हाथ में थामे डब्बे को खनकाया।
मैं भी अपनी सम्मोहनावस्था से बाहर आया,
और सब बच्चों को देख थोड़ा मुस्कुराया।
अरे ये सब क्या है, क्या सोसाइटी में कोई आयोजन है,
और क्या इस फैंसी ड्रेस कम्पटीशन के बाद भोजन है?
मुझे मूढ़ मति मान बच्चे मिल कर खिलखिलाये,
इट इस हैलोवीन अंकल सब साथ मुझे समझाये।
आज के दिन इसी तरह के कॉसट्युम पहनते हैं,
और घर घर जा कर कैंडी चॉकलेट इकठ्ठा करते हैं।
ट्रिक और ट्रीट?
यकायक बचपन की एक मीठी याद मन में उभर आई,
रामलीला में कितनी ही बार मैंने अंगद की भूमिका निभाई।
मुँह लाल कर गदा हाथ ले जब पाँव जोर से धरता था,
जय श्री राम के उच्च नाद से पूरा हॉल धमकता था।
गली गली हर नुक्कड़ पर सुन्दर झाँकी सजती थी,
जय गोविंदा जय गोपाला की मीठी धुन भी बजती थी।
घर घर सबसे चंदा लेने होली पर हम भी जाते थे,
हफ़्तों पहले से रंग गुलाल की आँधी खूब उड़ाते थे।
संक्रांत पर कितनी रंग बिरंगी पतंग उड़ाया करते थे,
हर तीज को आँगन के झूलों पर पींगे ऊंची भरते थे।
ट्रिक और ट्रीट?
एक बार फिर बच्चों ने किया ये उद्घोष मेरे द्वार,
क्यूँकि मुझे पुनः खींच ले गया था यादों का संसार।
सोचा कि ट्रिक बोल दूँ और देखूँ ये क्या करते हैं,
फिर सोचा कोई अच्छी ट्रीट दे सबको खुश रखते हैं।
हम तो चंदा न देनों वालों को अच्छा पाठ पढ़ाते थे,
कुछ न कुछ घर से उठा कर होली में डाल जलाते थे।
चॉकलेट का पूरा डिब्बा बच्चों के बैग में हमने डाला।
बाय बोल के सब बच्चों को बंद किया फिर घर का ताला।
मन ही मन मैं सोच रहा था कैसे उत्सव बदल गए हैं,
उमंग ढूँढ़ते अपने बच्चे कुछ नयी राहों पर निकल गए हैं।
ट्रिक और ट्रीट?
आखिर अपने समाज के लिए क्या हैं ये नए त्यौहार,
बगिया महकाते नए फूल या मूल फसल को खाती खरपतवार?
किसी भी त्यौहार पर हँसते मुस्कुराते बच्चे अच्छे लगते हैं,
पर क्या ये नए त्यौहार हमारे समाज में सच्चे लगते हैं?
त्यौहार वो कड़ी हैं जो बच्चों को स्वयं की सभ्यता से जोड़ते हैं,
उल्लास और उमंग से नवीन को पुरातन की दिशा में मोड़ते हैं।
आज त्यौहार बदलेंगे तो कल आदर्श विश्वास और मूल्य भी बदलेंगे,
और अगर मूलभूत सिद्धांत ही बदल जायेंगे तो क्या हम हम रहेंगे?
किसी दूसरे पर आक्षेप नहीं मात्र अपना सहेजने की अपेक्षा है,
क्यूँकि ये तो सच है कि आज भारत में भारत की ही उपेक्षा है।
अब आप ही निर्धारित करें कि हैलोवीन सावर है या स्वीट,
ट्रिक और ट्रीट?
स्वरचित
विवेक अग्रवाल 'अवि'
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