Shabd Jo Parinde Hain | Nasira Sharma
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शब्द जो परिंदे हैं | नासिरा शर्मा
शब्द जो परिंदे हैं।
उड़ते हैं खुले आसमान और खुले ज़हनों में
जिनकी आमद से हो जाती है, दिल की कंदीलें रौशन।
अक्षरों को मोतियों की तरह चुन
अगर कोई रचता है इंसानी तस्वीर,तो
क्या एतराज़ है तुमको उस पर?
बह रहा है समय,सब को लेकर एक साथ
बहने दो उन्हें भी, जो ले रहें हैं साँस एक साथ।
डाल के कारागार में उन्हें, क्या पाओगे सिवाय पछतावे के?
अक्षर जो बदल जाते हैं परिंदों में ,
कैसे पकड़ोगे उन्हें?
नज़र नहीं आयेंगे वह उड़ते,ग़ोल दर ग़ोल की शक्ल में।
मगर बस जायेंगे दिल व दिमाग़ में ,सदा के लिए।
किसी ऊँची उड़ान के परिंदों की तरह।
अक्षर जो बनते हैं शब्द,शब्द बन जाते हैं वाक्य ।
बना लेते हैं एक आसमाँ , जो नज़र नहीं आता किसी को।
उन्हें उड़ने दो, शब्द जो परिंदे हैं।
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